टाटा सन्स (Tata Sons) ने 18,000 करोड़ में एयर इंडिया(Air India) खरीदी |

आख़िरकार 10 वर्षो के चल रहे उठा पटक के बाद सरकार से एयर इंडिया (Air India) को टाटा सन्स (Tata sons) ने बोली लगाकर खरीद लिया है |सबसे ज्यादा 18000 करोड़ की बोली टाटा सन्स ने लगायी और सरकार ने इसे स्वीकार करते हुई अब एयर इंडिया को टाटा सन्स के हवाले कर दिया है |

और इस तरीके से एयर इंडिया एक बार फिर 67 वर्षो के बाद टाटा सन्स (Tata Sons) के हाथो में आ गयी है | अक्सर इंडिया में यह देखा गया है कि जब भी सरकारी कंपनी बिकती है तो लोगो में काफी दुःख और नकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिलती है|

लेकिन जब बात एयर इंडिया को टाटा सन्स (Tata sons) को बेचने की बात सामने आयी तो लोगो की प्रतिक्रिया सकारात्मक देखने को मिली और यह दर्शाता है कि Tata Sons या यू कहे कि Ratan Tata के हाथो में एयर इंडिया का कमान देख कर लोगो को बड़ा सुकून मिला है कि अब यह सही हाथो में चली गयी है |

आज हम यहाँ जानेंगे की एयर इंडिया को बेचना क्यों पड़ा सरकार को, और टाटा को 67 साल पहले सरकार को क्यों टाटा एयरलाइन्स सरकार को क्यों देनी पड़ी |

67 साल पहले टाटा के पास ही था एयर इंडिया

जी हा 67 साल पहले एयर इंडिया टाटा ग्रुप के पास ही था उस समय इसे टाटा एयरलाइन के नाम से जाना जाता था | उस समय टाटा ग्रुप के चैयरमेन थे JRD Tata थे |

और टाटा एयरलाइन की शुरुआत J R D Tata ने 15 अक्टूबर 1932 में की थी | और आपको यह जान के अच्छा लगेगा कि J R D Tata पहले भारतीय थे जिन्हे एयरप्लेन पायलट का लाइसेंस प्राप्त हुआ था |

10 फरवरी 1929 को जेआरडी टाटा को पायलट का लाइसेंस मिला था | और जेआरडी टाटा ने ही भारत के लिए पहला फ्लाइट भी उड़ाया था जो कराची से मुंबई वाया अहमदाबाद था |

यही टाटा एयरलाइन्स आगे चल कर एयर इंडिया में कन्वर्ट हो गयी | जैसा कि हम जानते है की 1932 से ही टाटा एयरलाइन्स अपना काम शुरू कर चुकी थी | लेकिन उसके बाद टाटा का कारोबार बढ़ रहा था सब कुछ अच्छा चल रहा था |

एयर इंडिया (Air India) की शुरुआत कब और कैसे हुई

उसी समय दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया भर में एविएशन सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ | लोग दूसरे देश या यात्रा करना लगभग बंद कर दिए थे पूरी दुनिया दो गुटों में बट गयी थी | इसी समय टाटा एयरलाइन को काफी नुकसान उठाना पड़ा | केवल टाटा ही नहीं उस समय मौजूद सभी एयरलाइन्स घाटे में जाने लगी |

1946 में टाटा एयरलाइन्स का नाम बदल कर एयर इंडिया कर दिया गया | उस समय अंग्रेज भारत छोड़ के जा रहे थे और आजादी के बाद भारत को भी अपना कोई एयर लाइन चाहिए था | तो Planning Commission Of India (योजना आयोग) ने प्रस्तावित किया की क्यों न घाटे में जा रही प्राइवेट कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाये | ताकि कंपनियों में पैसा लगाकर उन्हें घाटे से निकल सके | और हुआ भी ऐसा ही |

भारत से एक एक्ट पारित किया जिसका नाम था Air Corporation Act, 1953 इसी के अंतर्गत भारत की जीतनी भी विमान सेवाएं थी सबका राष्ट्रीयकरण किया गया और इसे दो भागो में बाट दिया पहला इंडियन एयरलाइन्स (Indian Airlines) और दूसरा एयर इंडिया (Air India) |

उस समय इंडियन एयरलाइन्स (Indian Airlines) भारत के अंदर डोमेस्टिक सेवाएं प्रदान किया करती थी और एयर इंडिया (Air India) सभी अंतरास्ट्रीय हवाई सेवाएं प्रदान करती थी | 1946 -2007 तक दोनों ही एयर लाइन्स का कारोबार काफी अच्छा चला | लेकिन फिर सरकार को ऐसा लगा की दोनों ही एयरलाइन्स सरकार की ही है तो उन्हें अलग – अलग मैनेज क्यों किया जाये | और इसी चलते 2007 में इंडियन एयरलाइन्स (Indian Airlines) और एयर इंडिया (Air India) को मर्ज कर दिया गया और उसका नाम एयर इंडिया ही रख दिया गया |

एयर इंडिया (Air India) को बेचने की जरुरत क्यों पड़ी

1946 के बाद से 2007 में मर्ज होने तक कंपनी अच्छे मुनाफे में चल रही थी और इंडिया की [su_highlight background=”#fadf2b”]नंबर 1 [/su_highlight] एयरलाइन्स बनी हुई थी | 2012 के बाद एयर इंडिया लगातार घाटे में जाने लगी | फ्यूल चार्ज बढ़ने और low cost carrier वजह से एयर इंडिया को काफी नुकसान हुआ और चौथे स्थान पर खिसक गयी |

और इसका मुख्य कारण था की एयरलाइन्स की सेवा में बहुत सारे प्राइवेट कंपनी आ गयी जैसे इंडिगो, स्पाइस जेट जो सस्ते दामों पर बहेतर सुविधाएं देने लगे और इन कंपनियों पर सरकार का कोई नियंतर नहीं था |

इस वजह से एयर इंडिया मुनाफा नहीं कमा पायी | और एक समय 2018 में एयर इंडिया ने अपना 76% हिस्सा बेचना चाहा लेकिन किसी ने भी वह हिस्सा खरीदने में रूचि नहीं दिखाई | जैसे -जैसे समय बीत रहा था एयर इंडिया का क़र्ज़ बढ़ता जा रहा था | इस समय तक इसका क़र्ज़ 60000 करोड़ हो चूका था |

कोरोना की वजह से एयर इंडिया को और भी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा इसी वजह से 2020 में इसे 100% स्टेक को बेचने की घोषणा की गयी | और इसके बाद इसकी बोली चालू हुई | इन्हे दो बड़ी कंपनी की तरफ से Bid लगायी गयी |

1- Tata Sons bid ₹18,000 crore
2- consortium led by SpiceJet chairman Ajay Singh was ₹15,100 crore

इसमें से यह bid Tata Sons ने जीत ली और एयर इंडिया (Air India) कंपनी को अपने नाम कर लिया |

कितने कर्ज़े में थी एयर इंडिया (Air India)

कंपनी बेचे जाने तक एयर इंडिया (Air India) का टोटल क़र्ज़ 60,000 करोड़ का था | यही सबसे बड़ा कारण था कि इसे बेचना पड़ा | क्युकि यह क़र्ज़ समय के साथ बढ़ता ही जाता | इसे सेल करने के बाद सरकार अब अपने कर्ज़े को कम कर पाएगी | और आगे होने वाले नुकसान से भी बच पाएगी |

क्या एयर इंडिया (Air India) का सारा क़र्ज़ टाटा चुकेगी ?

जी नहीं टाटा सन्स (Tata Sons) को केवल Bid का ही अमाउंट देना होगा | सरकार चाहे तो इस अमाउंट का इस्तेमाल क़र्ज़ चुकाने में कर सकती है | ताकि उसका क़र्ज़ ६०,000 करोड़ से कम होकर ४२,000 करोड़ रह जाये और यह अमाउंट सरकार को ही चुकाना है | जो वह आने वाले वर्षो में चूका सकती है |

रतन टाटा की प्रतिक्रिया

एयर इंडिया (Air India) को खरीदने के बाद सबका इंतजार रतन टाटा की प्रतिक्रिया पर था और उन्होंने ट्वीट करके अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की | उन्होंने ट्वीट किया Welcome back, Air India और एक फोटो भी पोस्ट की

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